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ग़ज़ल:

KUCH MERI KUCH TERI
KUCH MERI KUCH TERI
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लिए फिर अहमियत और इज्ज़तो-इमदाद लौटा है !
मुहल्ले में सियासत का बड़ा उस्ताद लौटा है !!

बहुत सहमी डरी सी देखती है शाख से बुलबुल !
चहकना बंद है इसका यहाँ सय्याद लौटा है !!

मेरी अस्मत के चिथड़े और तारों तार होने हैं !
जिसे कहते हो मेरा बाप वो जल्लाद लौटा है !!

जो बे परवाही क़िस्मत लिख वहाँ पर भी रही हो तब !
कहाँ कोई शहर से फिर यहाँ आबाद लौटा है !!

बुलंदी हौसले की बाप से दूनी, वही रस्ता !
हिरणकश्यप बहुत आये कभी प्रह्लाद लौटा है !!

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