KUCH MERI KUCH TERI
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मुंबई का शहर बेहुनर अब बुलाता न था !
दिन गये जो ये शहर हमें भूखा, सुलाता न था !!
रिश्तेदारी के नाम पर भी आते न अब !
अजनबी की तरह मैं जिनसे रिश्ते, निभाता न था !!
छोटी होती ये फेहरिस्त दुश्मनों की मेरे !
मैं अगर हाथ दोस्ती का सबसे, बढ़ाता न था !!
ख़त्म करके इसको तेरे करीब और तो होता !
ज़िन्दगी है तेरी नेमत तू जो, सिखाता न था !!
थी मैख़ाने की-सी सूरत उस मैख़ाने की !
कोई नज़रों से इस शायर को जब, पिलाता न था !!
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