Menu
blogid : 11416 postid : 566129

यूँ हीं

KUCH MERI KUCH TERI
KUCH MERI KUCH TERI
  • 17 Posts
  • 28 Comments

चाँद छुप गया है कहीं
मौत का सिलसिला तो नहीं!

या के फैलाया है अँधेरा
शायद कातिल निकले ही नहीं!

उससे देखी तो न जायेगी
खूं से तर घर की ज़मीं!

अरे तू कर भी क्या लेगा
पटकेगा बस अपना जबीं!

देख तेरे इंतज़ार में ?
है शम्मा में हरक़त कहीं!

है निस्बत तो लौट आ
मिलते हैं हर रोज़ वहीँ!!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply