KUCH MERI KUCH TERI
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चाँद छुप गया है कहीं
मौत का सिलसिला तो नहीं!
या के फैलाया है अँधेरा
शायद कातिल निकले ही नहीं!
उससे देखी तो न जायेगी
खूं से तर घर की ज़मीं!
अरे तू कर भी क्या लेगा
पटकेगा बस अपना जबीं!
देख तेरे इंतज़ार में ?
है शम्मा में हरक़त कहीं!
है निस्बत तो लौट आ
मिलते हैं हर रोज़ वहीँ!!
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