KUCH MERI KUCH TERI
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बड़ा परवान चढ़ा शौक दंगलों का है
बड़ा कमाल का ये शौक़ जंगलों का है
बनाते खुद को हैं फिर तोड़ कर बनाते हैं
क्या सिलसिला है ये क्या शौक़ जंगलों का है
हज़ारों साल में पनपे जहाँ वहीँ मर के
बनाना शहर भी इक शौक़ जंगलों का है
गिराए घर कई क्यूँ ना जब इंसां इंसां में
है अदब वहशीपन का शौक़ जंगलों का है
फिर उजड़नी हैं कुछ इक बस्तियां कहा तो था
बनाना तोड़ना ये शौक़ जंगलों का है
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