KUCH MERI KUCH TERI
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क्यूँ गये छोड़ के तनहा मुझे, गयी आन भी !
गुनाहगार ही था जब तो लिए जाते जान भी !!
अजीमुश्शान अफसाना था ज़िन्दगी का जो तुम थे !
गये, ख़ाली ही नहीं घर मगर लगे वीरान भी !!
हुए बेख़ुद हम जिस तरह जब पहलेपहल आये तुम !
गये, बेख़ुद है उसी तरह जज़्बा-ए-ईमान भी !!
धड़कता आज भी होगा कहीं चुपचाप कोने में !
अब इतनी दूर हो कैसे सुनो दिल की अज़ान भी !!
अपने अश्कों के इस दरिया को क़ैद कर तो लिया है !
गर आये इसमें नहा जाओगे तुम भी जहान भी !!
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