KUCH MERI KUCH TERI
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बाज़ार तालीम और हुनर का है अब जिस मक़ाम पर
न जाने और कैसी गाज गिरेगी अवाम पर !
चला है शक्स पढ़ाने जुदा फितरत उसकी है
जहां तू बेचता है बांटता है वो तमाम पर !
है नुमाईंदगी तेरी जहाँ इफरात की प्यारे
वहां लजाता है वो थोड़ा मसल-ए-ईनाम पर !
नहीं कतई नहीं तू कम वजह है दौरे-बेहतर की
तिजाराते-तालीम पर कसले हाथ बस लगाम पर !
पढ़ाने भेज तो हमभी रहे औलाद को लेकिन
ये सिलसिला ही हमने छोड़ा है ईश्वर के नाम पर !!
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