KUCH MERI KUCH TERI
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दिए में शम्मा सजाकर बड़ा खफ़ा किया है
जलीं जो उंगलियाँ कल आज उन्हें बचा लिया है!
रहा न ताब न ताक़त न हैसियत अपनी
जलाया अगर ज़रा और दिल जला लिया है!
कहा किया है सभी ने के जिसका ठीक उल्टा
इसी शहर ने कुछ को भूखा ही सुला लिया है!
कहाँ से होगा सभी के लिए सब इक जैसा
जो कुछ लुटेरों ने सब पहले ही दबा लिया है!
तो क्या हो जब ज़मीर हो खुराक ग़ुरबत की
जो मांगे मिल न सका छीना या चुरा लिया है!
तू कर दे बंद ओ बन्दे ये सब खुराफातें
वो देखेगा यहीं पर तुझको मन बना लिया है!!
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